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Role of Guru in modern times पत्थर भी गुरु, वालिद भी गुरु, शत्रु भी गुरु, श्रीमन भी गुरु; मानो तो सदा हर प्राण गुरु, ना मानो तो भी निष्प्राण गुरु; हर वेद गुरु, हर भेद गुरु, हर ख़ुशी गुरु, हर खेद गुरु; संगीत गुरु, शिक्षक भी गुरु, भव ताप गुरु, भिक्षुक भी गुरु; माता तो गुरु, पुत्री भी गुरु, भ्राता भी गुरु, भ्रात्री भी गुरु; ब्रह्मा भी गुरु, विश्णू भी गुरु, शिवशंकर भी गुरुओं के गुरु; वो पारब्रह्म ये अपार ब्रह्म, सर्वत्र खड़े हैं गुरु ही गुरु; बस आवश्यकता उस एक गुरु, जो देख सके चहुँ ओर गुरु; वह कौन गुरु, क्या मौन गुरु? जो जान सके तो तौन गुरु; इस तरह से होता पूर्ण गुरु, पूर्णिमा करे सम्पूर्ण गुरु।